Ganesh Ji ki Kahani में भगवान गणेश की सबसे प्रमुख कहानियों का प्रस्तुतिकरण है, जो ज्ञान, समृद्धि और भक्ति के प्रतीक हैं। ये किस्से उनके जन्म, ज्ञान परीक्षण, हाथी सिर वाले रूप की सृष्टि, आदि की हैं, जिनसे उनके दिव्य गुण और उपदेशों से भक्तों को प्रेरित किया जाता है।
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गणेश जी की खीर वाली कहानी:
Ganesh Ji ki Kahani किसी दिन की बात है, प्रियदर्शनाम् नामक एक गांव में एक बड़ी उत्सव की तैयारी चल रही थी। उस उत्सव का उद्देश्य था भगवान गणेश की पूजा करना और उनकी कृपा प्राप्त करना। गांव के सभी लोग मिलकर उत्सव की तैयारियों में जुट गए।
एक आदर्श नामक युवक था, जिनका नाम नीलकंठ था। नीलकंठ गांव के प्रमुख ने उसे गणेश जी के पूजन की जिम्मेदारी दी। नीलकंठ ने बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ गणेश जी की पूजा की। वह गणेश जी के सामने पूरी भावुकता से खड़ा होकर प्रार्थना करता था।
पूजा के बाद गांव के सभी लोगों ने मिलकर भगवान गणेश के चरणों में प्रणाम किया और उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। तभी एक बुढ़िया ने नीलकंठ के पास आकर एक बड़ी-बड़ी पेड़ियाँ भरी हुई खीर की मिठास लाई।

बुढ़िया ने कहा, “बेटा, यह खीर तुझे गणेश जी के भक्ति में भगवान की कृपा प्राप्त होने का प्रतीक है। इसे सभी के साथ बांट दें और गणेश जी के प्रति हमारी भक्ति को प्रकट करें।”
नीलकंठ ने खुशी-खुशी खीर की पेड़ियाँ सभी के साथ बांट दी और गणेश जी की महिमा गाते हुए उनकी पूजा की। खीर की मिठास और भगवान की कृपा से उत्सव में खासी खुशियाँ थीं।
इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि भगवान की भक्ति में मन, श्रद्धा, और सेवा का महत्व होता है। हमें गरीबों और असहाय लोगों की मदद करने का भी आदर्श प्राप्त होता है, क्योंकि भगवान की कृपा हमें उनके सेवानुसार मिलती है।
आशा है कि यह कहानी आपको पसंद आई होगी। गणेश जी के प्रति आपकी भक्ति में और भी वृद्धि हो।
Ganesh Ji ki Kahani बूढ़िया वाली:
किसी दिन की बात है, एक छोटे से गांव में एक बूढ़ी औरत रहती थी। उसका नाम भगवती देवी था। वह गांव की सबसे बड़ी भक्तिभावना और समर्पण वाली थी। भगवान गणेश के प्रति उनकी अत्यंत महान भक्ति थी।
भगवती देवी का दिन ऐसा होता था कि वह सुबह से ही उठकर भगवान गणेश के पूजन में लग जाती थी। उनकी पूजा में उनकी सारी समय और श्रद्धा लग जाती थी। वह अपने घर में बनायी गई मिठाइयों और खाद्य पदार्थों का एक हिस्सा गणेश जी के नाम पर उनकी पूजा में चढ़ाती थी।
एक दिन, गांव में एक बड़ा उत्सव आयोजित हुआ। इस उत्सव में गांव के सभी लोग भाग ले रहे थे, लेकिन भगवती देवी के पास कुछ पैसे नहीं थे जिन्हें वह खर्च कर सकती। वह बहुत ही चिंतित हो गई।

उस समय, उसके मन में गणेश जी की विशेष भक्ति और आसरा था। वह सोचने लगी, “गणेश जी, आप मेरे प्रिय पति हैं, मेरे सब कुछ हैं। कृपया मेरी सहायता कीजिए।”
भगवती देवी ने एक शिला पर गणेश जी की मूर्ति का आभास बनाया और उसके समक्ष एक पूजा की। उन्होंने गणेश जी से यह प्रार्थना की, “गणेश जी, मैं जानती हूँ कि आप मेरे सच्चे भक्त हैं। मेरे पास पैसे नहीं हैं उन्हें उत्सव में खर्च करने के लिए। कृपया मुझे आपकी आशीर्वाद दीजिए ताकि मैं उत्सव में भाग ले सकूँ।”
उस रात, भगवती देवी को एक सपना आया। उसमें गणेश जी आकर्षक और प्रेमभरे रूप में उनके सामने आए और उन्होंने भगवती देवी को आशीर्वाद दिया।
उत्सव के दिन, जब सभी गांववाले खुशी-खुशी उत्सव में भाग ले रहे थे, भगवती देवी की आँखों में आंसू थे क्योंकि उन्होंने गणेश जी की कृपा और आशीर्वाद से ही उत्सव में भाग लेने की सम्भावना पाई थी।
इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि भगवान की भक्ति में विश्वास और समर्पण का महत्व होता है। चाहे हालात जैसे भी हों, अगर हम पूरी भक्ति और निष्ठा से उनकी पूजा करें, तो वे हमें सदैव आशीर्वाद देते हैं।
गणेश जी की पेड़ वाली कहानी:
Ganesh Ji ki Kahani किसी दिन की बात है, एक छोटे से गांव में एक बड़ा पेड़ खड़ा था। यह पेड़ अत्यंत विशाल और वृक्षराज कहलाता था। इस पेड़ के नीचे लोग आकर्षित होते थे क्योंकि इसकी छाया बड़ी ठंडी और आरामदायक होती थी।
गांववाले रोज़ाना पेड़ के नीचे आकर आराम करते और उसकी छाया में मिलकर बातें करते थे। लोग इस पेड़ को विशेष दृष्टि से मानते और समर्पण से उसकी सेवा करते थे।
एक दिन, गांव में एक छोटा सा बच्चा आया। उसका नाम आर्यन था। वह पेड़ के पास आकर खेलने लगा। वह पेड़ के नीचे खुशी-खुशी खेल रहा था और पेड़ से बातें करने लगा।
गणेश जी ने आर्यन की भक्ति और समर्पण देखकर खुश होकर उसके सामने प्रकट हुए। गणेश जी ने आर्यन से कहा, “मेरे प्यारे बच्चे, मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ। तुम्हारे इस प्रेम और समर्पण के लिए मैं तुम्हें एक वरदान देना चाहता हूँ।”
आर्यन ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, “वरदान? कौन सा वरदान, भगवान?”
गणेश जी ने मुस्कराते हुए कहा, “आर्यन, मैं तुम्हें इस पेड़ की तरह विशालता, सहायता और समर्पण प्रदान करता हूँ। तुम भी दूसरों की मदद करने में इस पेड़ की तरह विशाल होने का प्रयास करो।”
आर्यन ने आभारी मन से गणेश जी की प्रार्थना की और उनके वरदान को स्वीकार किया। उसने गणेश जी की बातों का पालन करते हुए अपने जीवन को बदल दिया। वह भी अब दूसरों की मदद करने में विशेष रूप से व्यस्त रहता और उनके सहयोग से अपने गांव को और भी सुन्दर बनाता गया।
इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि सेवा, समर्पण और दूसरों की मदद करने में ही वास्तविक विशालता है। भगवान गणेश की भक्ति के साथ-साथ हमें अपने जीवन को भी सर्वोत्तम बनाने की प्रेरणा मिलती है।
गणेश जी की मंदिर वाली कहानी:
Ganesh Ji ki Kahani किसी गांव में बहुत ही पुरानी एक मंदिर था, जो भगवान गणेश के लिए समर्पित था। यह मंदिर गांव की जनसंख्या के हिसाब से बड़ा नहीं था, लेकिन उसकी महत्वपूर्णता बहुत उच्च थी।
मंदिर के पुजारी, रामदास, भगवान गणेश के अत्यंत भक्त थे। उन्होंने मंदिर की सफाई और सुरक्षा की देखभाल करने के साथ-साथ गांव के लोगों की मदद भी की। उन्होंने गणेश जी की पूजा-अर्चना को अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बना लिया था।
एक बार, गांव में अचानक बहुत बड़ी सुस्ती आ गई। लोगों की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई और उन्हें आवश्यक सामग्री खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे। मंदिर में भी पूजा की सामग्री की कमी हो गई थी।
रामदास पुजारी को यह देखकर दुःखी हुए। वह जानते थे कि गणेश जी की पूजा के बिना मंदिर का माहौल अधूरा लगेगा। उन्होंने सोचा कि वे इस समस्या का समाधान कैसे ढूंढ सकते हैं।
एक दिन, रात के समय, रामदास पुजारी ने गहरी ध्यान में गणेश जी की प्रार्थना की और उनसे मदद के लिए उपाय मांगा। वे आशा रखने लगे कि गणेश जी उनकी प्रार्थना सुनेंगे।
अगले दिन, एक बच्चा मंदिर में आया और अपने हाथों में कुछ खिलौने लेकर आया। उसने रामदास पुजारी से कहा, “भगवान, मैंने आपके लिए कुछ खिलौने लाए हैं। क्या आप उन्हें गणेश जी के पास पहुँचा सकते हैं?”
रामदास पुजारी ने बच्चे की यह अनूठी बात सुनकर खुशी खुशी उसके साथ चलकर मंदिर में जाकर खिलौनों को गणेश जी के सामने रख दिया। तभी उन्होंने एक अद्भुत बात देखी – गणेश जी की मूर्ति ने आवाज़ दी और कहा, “रामदास, इन खिलौनों को लोगों को बांट दो, और इसके बदले में उन्हें मेरी पूजा करने में लगाओ।”
रामदास पुजारी ने आश्चर्यचकित होकर गणेश जी की मूर्ति की ओर देखा और उनकी पूजा करने लगे। वे उस बच्चे की खिलौनों को लोगों में बांट दिए और गणेश जी की पूजा के लिए समर्पित हो गए।
गणेश जी की आशीर्वाद से ही मंदिर में फिर से ऊर्जा और प्रसन्नता की भावना आई। लोग उसी ऊर्जा के साथ अपने जीवन में नए उत्साह और समर्पण के साथ काम करने लगे।
इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि भगवान की मंदिर में सेवा करने का महत्व होता है और हमें अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करने के लिए भगवान की दिशा में प्रार्थना करनी चाहिए।
गणेश जी की कैलाश वाली कहानी:
Ganesh Ji ki Kahani कैलाश पर्वत, भगवान शिव की प्रमुख निवास स्थली है, जहाँ उनके साथ ही उनकी परिवारी भक्ता गणेश जी भी वास करते थे। यह कहानी उन दिनों की है, जब गणेश जी ने कैलाश पर्वत पर एक अद्भुत घटना का सामना किया।
एक दिन, गणेश जी ने अपने भगवान शिव पिता से पूछा, “पिता, क्या आप मुझे कैलाश पर्वत की ऊँचाइयों पर ले जा सकते हैं? मैं वहाँ जा कर आपके विशाल दर्शनीय रूपों को देखना चाहता हूँ।”
शिव जी ने मुस्कराते हुए कहा, “बिल्कुल, मेरे प्यारे बेटे! हम तुम्हें कैलाश ले जाएंगे।”
फिर एक दिन, गणेश जी और शिव जी ने एक साथ कैलाश पर्वत की यात्रा की। रास्ते में, गणेश जी ने बड़े ही प्यार भरे नजारे देखे – शिव जी की तांडव नृत्य, पार्वती माता की आशीर्वाद से फूलों की महक, और अन्य देवताओं की विशेष रूपों की प्रतिमाएँ।
जब गणेश जी और शिव जी ने कैलाश पर्वत के शिखर तक पहुँचा, तो वह अपने पैरों की जराहट की वजह से थोड़ी सी परेशानी महसूस करने लगे। शिव जी ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन गणेश जी ने कुछ अलग तरीके से फ़ासले को पार किया।
उन्होंने अपनी मात्रा को छोटे से पत्थर में स्थापित किया और उस पत्थर को कैलाश पर्वत की सबसे ऊँची चोटी पर पहुँचाने के लिए उसे बड़े ही समर्पण और मेहनत से साथ लिया।
आखिरकार, गणेश जी ने अपने पत्थर को सफलतापूर्वक कैलाश की चोटी पर पहुँचा दिया। वहाँ पर, उन्होंने अपने बड़े और विशाल पिता शिव जी को देखा और उनके साथ बिताए गए समय का आनंद उठाया।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें कभी भी थामे हुए समस्याओं को हल करने के लिए उत्साह, मेहनत, और समर्पण की आवश्यकता होती है। गणेश जी की इस कथा से हमें यह भी सिखने को मिलता है कि हमें अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किसी भी स्थिति में संघर्ष करना चाहिए, और हालातों के बावजूद प्रतिबद्ध रहना चाहिए।
गणेश जी की पथर वाली कहानी:
किसी गांव में एक साधू बाबा रहते थे, जिनका नाम स्वर्णानंद था। वे बड़े ही तपस्वी और भक्तिभरे जीवन जीने वाले थे। स्वर्णानंद बाबा के पास एक छोटा सा मंदिर था, जिसमें वे अपने प्रिय भगवान गणेश की पूजा करते थे।
एक दिन, बाबा ने मंदिर के पास एक बड़ा पत्थर देखा। उस पत्थर की आकार बड़ी अजीब थी – वो ठंडे पानी के एक बर्तन की तरह दिखता था। बाबा ने विचार किया कि यह पत्थर कहाँ से आया होगा और उसका महत्व क्या हो सकता है।
उन्होंने पत्थर को ध्यान से देखा और देखा कि वह कुछ लकीरों से लिपटा हुआ था। बाबा ने उन लकीरों को ज्यों की ज्यों पढ़ने की कोशिश की, उतने ही हीरे के समान, बड़े आश्चर्य से, उन्होंने वे शब्द पढ़ लिए – “गणेशाय नमः”।
बाबा को यह देखकर अद्भुत आनंद हुआ। उन्होंने समझा कि यह पत्थर भगवान गणेश का अद्भुत अवतार है। वे पत्थर को अपने मंदिर में स्थापित कर दिया और श्रद्धा भक्ति से उसकी पूजा करने लगे।
स्वर्णानंद बाबा की भक्ति और समर्पण ने उनके पास अद्वितीय आनंद और शांति का आभास कराया। उनके मंदिर में आने वाले लोग भी बाबा के उपदेश और पूजा की भावना से प्रेरित होकर अपने जीवन को धार्मिक और आदर्शपूर्ण बनाने का प्रयास करने लगे।
इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि भगवान का दर्शन हमें किसी भी रूप में हो सकता है, और हमें भक्ति और समर्पण से उनकी पूजा करनी चाहिए। इसके साथ ही, हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हर चीज़ के पीछे एक अद्वितीय संदेश छिपा हो सकता है, हमें समय समय पर उसे समझने का प्रयास करना चाहिए।
मिथ्यावादी परिवार की कहानी
एक बार की बात है, पुरातन काल में गणेश जी और उनके माता-पिता, भगवान शिव और माता पार्वती, के बीच एक मिथ्यावादी परिवार की कहानी है।
बात यहां से शुरू होती है कि माता पार्वती और भगवान शिव के बीच मुकदमा चल रहा था कि कौन उनके दोनों बच्चों में सबसे बुद्धिमान है – गणेश जी या कार्तिकेय (कार्तिक). यह उनकी माता पार्वती की तरफ से एक प्रतियोगिता थी।
एक दिन, माता पार्वती ने उनसे उनके दो बच्चों के बीच एक प्रतियोगिता का आयोजन किया। विभिन्न विद्याओं, शक्तियों और गुणों में प्रतिस्पर्धा के तहत, गणेश जी और कार्तिक ने उनके प्राप्तियों का प्रदर्शन किया।
अब, एक दिन, उनके गुरु नारद ऋषि आये और देखा कि गणेश जी के पास सम्पदा नहीं है, वह सिर्फ एक आम बच्चा है जबकि कार्तिक के पास राजा के आदर्शों का पालन करने की क्षमता है। यह देखकर नारद ऋषि ने माता पार्वती को सार्थक युक्ति दी।
माता पार्वती और भगवान शिव ने इस बार दृढ़ संकल्प बनाया कि उनके बच्चों का विवाद समाप्त करना चाहिए। वे तय किया कि जो भी बच्चा पूरे विश्व के सभी जीवों की सेवा करने का वादा करेगा, उसे जीत का अधिकार होगा।
गणेश जी ने जीत हासिल की, क्योंकि उन्होंने समस्त विश्व की सेवा का वादा किया था, जबकि कार्तिक ने राजा के आदर्शों का पालन करने की क्षमता का प्रदर्शन किया था।
इस प्रतियोगिता के बाद, गणेश जी ने दिखाया कि यह वही बच्चा है जिसके पास सभी की सेवा करने की क्षमता है, चाहे वह कितनी भी सम्पदा न हो। उनका संबल और बुद्धिमत्ता के साथ व्यवहार उन्हें एक महत्वपूर्ण दिव्यता बनाता है।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि सच्चे धन की अमानवीय भावनाओं के मुकाबले में कोई महत्व नहीं रखता है, और सेवा और उदारता का महत्व हमेशा बरकरार रहता है।
गणेश जी की बुद्धिमत्ता की कहानी
गणेश जी की एक मशहूर कहानी में उनके बुद्धिमत्ता और विवेक का महत्व दिखाया गया है, जो बुद्धवार के दिन की है।
कुछ समय पहले की बात है, एक बार किसी शहर में गणेश जी का भक्त एक बड़े और सुंदर मंदिर में पूजा करने आया। उसने मंदिर के पूजा स्थल में दीपक जलाने का आदर किया और गणेश जी की पूजा करने बैठ गया।
पूजा के बाद, वह दीपक का ब्रह्मण के पास लाने के लिए जाने लगा, जिन्होंने उसकी पूजा की थी। जब वह वापस आया, तो वह देखा कि गणेश जी की मूर्ति के पास एक मुर्गा बैठा हुआ था और दीपक के अंदर जल रहा था।
भक्त बहुत ही परेशान हो गया क्योंकि उसने दीपक के अंदर मुर्गे को बनाया ही नहीं था। वह चिंतित होकर ब्रह्मण के पास गया और उनसे माफी मांगने लगा।
ब्रह्मण ने उससे पूछा, “तुम्हारा इस पर क्या कारण है कि तुमने मुर्गे को जलाया है?” भक्त ने व्यक्त किया कि वह मुर्गा उसका नहीं था, और यह भूल से हो गया।
ब्रह्मण ने मुस्कराते हुए कहा, “इससे तुम्हें कोई चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। गणेश जी बहुत ही बुद्धिमान और समझदार देवता हैं। उन्हें यह समझ में आ गया कि तुमने गलती से मुर्गे को जलादिया है।”
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि गणेश जी की बुद्धिमत्ता और विवेक अनमोल हैं। वे हमें यह सिखाते हैं कि हमें अपनी गलतियों से सीखना चाहिए और उन्हें सुधारने का प्रयास करना चाहिए, और यही हमें सफलता की ओर आगे बढ़ने में मदद कर सकता है।
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