शिव शंकर भगवान की कथा: महादेव की लीला TOP 3 कथाएँ

शिव शंकर भगवान की कथा भगवान शिव, जिन्हें भोलेनाथ, रुद्र, महादेव आदि नामों से भी पुकारा जाता है, हिन्दू धर्म में त्रिदेवों में एक महत्वपूर्ण देवता माने जाते हैं। वे सर्वशक्तिमान और दुर्जय भी हैं, लेकिन उनकी आदर्श और प्रेमभावना की वजह से वे भक्तों के दिलों में प्रिय हैं। शिव शंकर की कथाएँ हमें उनके महत्वपूर्ण घटनाओं और लीलाओं को समझने में मदद करती हैं।शिव शंकर भगवान की कथा आइये जानते हैं

शिव शंकर भगवान की कथा

1. शिव की विवाह लीला

पुराने समय की बात है, कैलास पर्वत पर भगवान शिव अपने तपस्या और ध्यान में लगे रहते थे। उनका ध्यान ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं को भी प्रभावित करता था। लेकिन एक समय आया, जब उन्हें विवाह की इच्छा हो गई।

शिव ने अपनी विवाह की इच्छा ब्रह्मा जी के सामने रखी। ब्रह्मा जी ने उनकी प्रार्थना सुनी और विष्णु जी के साथ मिलकर विवाह की योजना बनाई। वे दोनों गंगा नदी के किनारे पहुंचे और वहां एक यज्ञ का आयोजन किया।

वहां पर, भगवान शिव ने सुंदरी सती के रूप में अवतार धारण किया। सती राजा दक्ष की पुत्री थी और वह भगवान शिव की भक्त थी। वह बचपन से ही शिव की तपस्या में लगी रही थी और उनके पास आयी।

यज्ञ में सती का आगमन होते ही, उनकी आँखों में भगवान शिव के प्रति प्रेम की बूँदें बिखरने लगी। उनके हृदय में शिव के प्रति आदर और भक्ति की भावना बढ़ गई। सती ने यज्ञभूमि में प्रवेश किया और वहां बैठकर मन में शिव की मूर्ति का ध्यान किया।

देवी सती ने यज्ञभूमि पर अपने माता-पिता की निन्दा की और उन्हें अपमानित किया क्योंकि वे भगवान शिव का अपमान कर रहे थे। यह सुनकर राजा दक्ष ने उन्हें आलोचना की और उन्हें यज्ञ के स्थल से निकाल दिया।

सती का मानसिक दुख बढ़ता गया और उन्होंने अपने आपको यज्ञकुंड में अंगद दिया। उनके शरीर को अग्नि ने जला डाला और उनकी आत्मा ने भगवान शिव की ओर प्रस्थान किया।

इसके बाद, भगवान शिव अत्यंत दुखी हुए और उनका विरहन असहनीय था। उन्होंने विरहिणी सती की अवशेषों को संग्रहित किया और अपने ध्यान में लग गए।

कुछ समय बाद, भगवान विष्णु ने सती की पुनर्जन्म की योजना बनाई और वे पुन: पार्वती रूप में प्रकट हुईं। भगवान शिव ने पुन: पार्वती को अपनी पत्नी बनाया और उनका विवाह आयोजित किया।

इस प्रकार, भगवान शिव की विवाह लीला ने हमें प्रेम और भक्ति की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ सिखाई, और यह भी दिखाया कि भगवान की इच्छा और भक्त की प्रार्थना कभी अवश्य पूरी होती है।

2. हलाहल पीने का अमृत

दुनिया के प्राचीन काल में भगवान शिव जी अपने तपस्या और साधना में लगे रहते थे। उनकी ध्यानधारणा इतनी गहरी और अद्वितीय थी कि ब्रह्मा भगवान भी चिंतित हो गए। उन्होंने विशेष रूप से भगवान शिव के साधना के बारे में ब्रह्मा से पूछा। ब्रह्मा जी ने कहा, “हे ईश्वर! शिव जी की साधना इतनी तीव्र और प्रशांत है कि उनके पास उन्हें दुनिया की सृष्टि के रहस्यों का ज्ञान प्राप्त होने की संभावना है।”

भगवान ब्रह्मा के शब्दों से प्रेरित होकर भगवान विष्णु ने भी शिव जी की तपस्या की ओर ध्यान केंद्रित किया। भगवान विष्णु ने तय किया कि वे शिव जी की तपस्या को बाधित नहीं करेंगे और उन्हें अपने अनुयायियों के लिए एक बड़ा उपहार प्रदान करेंगे।

ऐसे ही एक दिन, भगवान शिव अपनी तपस्या के दौरान बहुत गर्मी महसूस करने लगे। उन्होंने अपने तपोबल से समुंद्र के जल को उबाल दिया और हलाहल (क्षार) उत्पन्न हुआ। हलाहल का रंग विषूचिका नक्षत्र के समय बदल गया और वह जल अमृत रूप धारा में परिणत हो गया।

देवताओं और असुरों ने उस घटना की खबर सुनी और वे सभी विचलित हो गए। उन्होंने भगवान विष्णु से सलाह मांगी। भगवान विष्णु ने उन्हें यह समझाया कि शिव जी की तपस्या के फलस्वरूप हलाहल उत्पन्न हुआ है और उसे समुद्र में प्रवाहित करने की आवश्यकता है।

भगवान विष्णु ने गरुड़ को उपाय बताया कि वह हलाहल को समुद्र में छोड़ दे। गरुड़ ने भगवान की आज्ञा का पालन करते हुए हलाहल को समुद्र में प्रवाहित किया।

इस प्रकार, भगवान शिव की तपस्या और भगवान विष्णु की सहायता से हलाहल को समुद्र में बहा दिया गया और दुनिया को बड़ी मुसीबत से बचाया गया। इस प्रकार, हलाहल का अमृत बनना भी शिव और विष्णु की महानता का प्रतीक बन गया।

इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि तपस्या, साधना और सहायता के माध्यम से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है और दुनिया की सुरक्षा के लिए सामर्थ्य हम में होता है। शिव हलाहल पीने का अमृत एक ऐतिहासिक कथा है जो हमें प्रेरित करती है कि हमें उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए संकल्पित रहना चाहिए।

3. भोलेनाथ और भक्त प्रहलाद

बहुत समय पहले की बात है, प्राचीन काल में, प्रहलाद नामक एक ब्राह्मण कुल के राजकुमार थे। प्रहलाद बचपन से ही भगवान विष्णु के दीवाने थे और उनके चरणों में ही अपनी पूजा करते थे।

प्रहलाद के पिता, हिरण्यकशिपु, एक बड़े राजा थे और वे अपनी भगवान से अधिक शक्तिशाली मानते थे। वे खुद को भगवान के समान समझते थे और सभी को अपनी पूजा करने के लिए मजबूर करते थे। हिरण्यकशिपु का एक मात्र दुश्मन था – भगवान विष्णु।

हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को भी अपनी शक्तियों के प्रति अनुचित विश्वास दिलाने का प्रयास किया, लेकिन प्रहलाद का मन अपने प्रिय भगवान विष्णु की ओर था। वह भगवान की पूजा करने का नाम नहीं ले सकते थे, क्योंकि उनके पिता की विरोध में यह स्थिति थी, लेकिन उनकी ह्रदयगति भगवान के प्रति अत्यंत दृढ़ थी।

अवस्थाएं बदल गईं जब प्रहलाद की माता पिता की आदेशों के खिलाफ भगवान विष्णु की पूजा करते हुए पाये गए। हिरण्यकशिपु के रोष से भरे हुए, वह उन्हें बहुत से कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। परन्तु प्रहलाद भगवान के प्रति अपनी विश्वासशीलता में कमी नहीं करते थे।

एक बार, हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को समुंदर के नीचे एक पहाड़ी से कूदकर मरने की कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु ने उन्हें बचा लिया। फिर एक बार, हिरण्यकशिपु ने उन्हें बड़ी भयंकर दहेजों की पेशकश की, लेकिन प्रहलाद ने उन्हें मना कर दिया।

हिरण्यकशिपु ने उसे विभिन्न प्रकार की सजाओं से गुजरने के बाद भी प्रहलाद की अद्भुत भक्ति का सामना करके हैरान हो गए। उन्होंने अपने सभी प्रयासों के बावजूद भी प्रहलाद को बदलने में नाकाम रहा।

आखिरकार, एक दिन हिरण्यकशिपु ने अपने प्रहारी हिरण्याक्ष को बुलवाया और उन्हें प्रहलाद को मर दालने का आदेश दिया। हिरण्याक्ष ने प्रहलाद को एक विशेष कुआँ में डाल दिया जिसमें से उसकी मदिरा विषयुक विचित्ररूप से बह रही थी।

प्रहलाद ने अपनी भक्ति की मदिरा को पीने से इनकार कर दिया और वह भगवान विष्णु का जप करने लगा। उसकी भक्ति और विश्वास के आदिकारी होने पर भगवान विष्णु ने उसके रक्षा की और हिरण्याक्ष को मार दिया।

इसके बाद, प्रहलाद को राजगद्दी दी गई और उन्होंने अपने पूज्य भगवान विष्णु की भक्ति में अपना जीवन बिताया। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि अच्छे कर्म, श्रद्धा और भगवान के प्रति अटूट विश्वास से व्यक्ति किसी भी परिस्थिति का सामना कर सकता है और उसे पार कर सकता है।

भगवान शिव की कथाओं का महत्व

शिव शंकर भगवान की कथा – भगवान शिव की कथाएँ हमें उनके अद्वितीय गुणों, महिमा और भक्ति मार्ग को समझने में मदद करती हैं। ये कथाएँ हमें धार्मिकता, श्रद्धा और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा प्रदान करती हैं।

आखिरी शब्द

शिव शंकर भगवान की कथा – भगवान शिव की कथाएँ हमें उनके महत्वपूर्ण घटनाओं और लीलाओं को समझने में मदद करती हैं और हमें उनके प्रति अपनी भक्ति को व्यक्त करने का मार्ग प्रदान करती हैं। इन कथाओं के माध्यम से हम उनके प्रति अपनी श्रद्धा और समर्पण को मजबूत कर सकते हैं और उनके आदर्शों का पालन करके उनके मार्ग पर चल सकते हैं।

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