शिव चालीसा कितनी बार पढ़ना चाहिए, भगवान शिव की महिमा को स्तुति देने वाली एक प्रमुख पूजा पाठ है जिसका महत्व विश्वास के साथ आता है। शिव भक्तों के लिए शिव चालीसा का पाठ आदर्श है, जो उनके मानसिक और आध्यात्मिक विकास को प्रोत्साहित करता है। इस लेख में हम जानेंगे कि शिव चालीसा कितनी बार पढ़ना चाहिए और इसके महत्व क्या है।
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शिव चालीसा का महत्व
शिव चालीसा का पाठ करने से भक्तों का मानसिक शांति में सहायक होता है और उनकी आध्यात्मिकता को बढ़ावा मिलता है। यह शिव की भक्ति में विश्वास रखने वालों के लिए एक माध्यम होता है जो उनके प्रति आदर्शों के पालन में मदद करता है। शिव चालीसा का पाठ करने से भक्तों की आत्मा को शांति और प्रसन्नता मिलती है।
शिव चालीसा कितनी बार पढ़ना चाहिए?
शिव चालीसा को किसी भी समय और आवश्यकतानुसार पढ़ा जा सकता है। यह आपके श्रद्धा और समय की आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, शिव चालीसा को रोज़ाना एक बार पढ़ने से आध्यात्मिक उन्नति होती है और भक्त की आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिलती है।
यदि आप शिव चालीसा को विशेष अवसरों पर पढ़ना चाहते हैं, तो आपकी आवश्यकतानुसार उपयुक्त संख्या में बार-बार पढ़ सकते हैं, जैसे कि सोमवार को शिव जी की पूजा के दिन अधिक बार पढ़ना किया जाता है।
शिव चालीसा को कितनी बार पढ़ना चाहिए यह व्यक्ति की आस्था, विश्वास और समय के आधार पर निर्णय किया जा सकता है। धार्मिक दृष्टिकोण से, कोई निशित संख्या नहीं है जिसमें आपको शिव चालीसा पढ़नी चाहिए। आप चाहें तो रोज़ाना एक बार या किसी विशेष दिन या अवस्था में उसे पढ़ सकते हैं।
शिव चालीसा को पढ़ने से पहले, आपके इंटेंशन और मानसिक स्थिति महत्वपूर्ण होती है। आप उसे एक सकारात्मक और श्रद्धाभाव से पढ़ सकते हैं, जो आपके आस-पास के वातावरण के अनुसार हो सकता है।
आपके स्थानीय परंपराओं, आचार्यों के सुझावों या आपके आस-पास के धार्मिक समुदाय के अनुसार, आपको कितनी बार शिव चालीसा पढ़नी चाहिए यह तय कर सकते हैं।
समग्र रूप से, यह आपकी आस्था और अनुष्ठान की व्यक्तिगत दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।
शिव चालीसा:
दोहा:
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
चालीसा:
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चंद्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नाग फेने॥
आंग गजमुक्त गहे मुँहे।
चांपक बजेंदु बाजे काने॥
अँग मातंग कर कटि सवारी।
सोहे भाग किन्हें कवारी॥
कानन कुण्डल शोभित नासागैना।
कांपें मुँह मातु की रञ्जना॥
वक्रतुण्ड न महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
कैलास में अवधूत बनी वैकुण्ठ परम पद हमारे।
त्रिपुरारि शंकर भगवान वीरभद्र वन्दन करतारे॥
जयति जयति जय शिव शंकर।
कारण कारण भूतवासक वैभवक निनादक करतारे॥
केहरि वाहन सोहत छवि भारत अस की आराधक।
श्री गंगा धरती जल से आया कैलास पर्वतक॥
अंशुमति नमित नील कमल निगम सो अमित सम मान।
निज मन की यह बचन कहि गगन महंगे उर की धारक॥
जय गिरिजा पति तनय सग परम पद पावक गौरी अवधूत चारी।
कदली फल में बसत अरु तनय सकल तेरो संकट हरी॥
कृपा दृष्टि तुम्हारी बिना सुनैन अस को अदिखवारा।
नाम बिना तारन कोई नही अवधूत की अद्भुत बिचारा॥
पानी में में तारुणी घटत घटत भानु सुतनी चंद्रमा।
जीवन में आपनी वाणी बिचारी मम नियम परमा॥
तीसरी आँखिया मूल जब लिए बना तिनक तन धरणी सूता।
मम पद कमल हरण सकुचति नमन करत हिय तूता॥
आपन शरण तजि कै अवधूत करण सिन्धु अनिक अनाथ।
अब मोहिं अवधूत नाथ गिरिजापति करहु कृपा पाथ॥
जो कोई जन तव महिमा गावै सो उचित सुख संपति पावै।
संकट कटै मिटै सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलभवै॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
चालीसा की पाठ करि बिरजै।
मनोरथ सिद्ध होवै चिरजै॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
दोहा:
पावन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥
निष्कर्ष
शिव चालीसा की पाठ की अद्भुत शक्ति है जो भगवान शिव के प्रति श्रद्धा और आदर की भावना को बढ़ावा देती है। इसका पाठ करने से भक्त उनके दिव्य गुणों को समझने में सफल होते हैं और उनके आदर्शों का पालन करने के लिए प्रेरित होते हैं।
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